गिरीश चंद्र पांडे
भारत की पड़ोसी प्रथम नीति
भारत की ‘वसुधैव कुटुम्बकम् ’ की उदात्त भावना केवल कोरे शब्दों में ही नहीं बल्कि भारत की आत्मा में इस रूप में विद्यमान है कि कैसे भारत अपने पड़ोसियों के साथ उसके प्रत्येक सुख-दु:ख में बराबर का भागीदार बना रहे। दूसरे शब्दों में कहें तो यह भारत के डीएनए में ही है कि उसने सदैव पड़ोसी देशों के प्रति अपनी उक्त वचनबद्धता का न केवल हमेशा पालन किया है बल्कि उसे निरन्तर और ठोस रूप दिया है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के अनुसार , “ आज पड़ोसी सिर्फ वो ही नहीं हैं जिनसे हमारी भौगोलिक सीमाएं मिलती हैं, बल्कि वे भी हैं जिनसे हमारे दिल मिलते हैं। जहां रिश्तों में समरसता होती है और मेल- जोल रहता है।” हालांकि, कई लोग इसे केवल राजनीतिक वाकपटुता के रूप में देखते हैं परन्तु भारत इसे एक कूटनीतिक आवश्यकता के तौर पर मानता है (Neighbourhood first is not mere political rhetoric but a strategic necessity).
इस पुस्तक में भारत की आजादी प्राप्ति के बाद से ही अपने पड़ोसी देशों पाकिस्तान, बांग्लादेश, नेपाल, भूटान, श्रीलंका, मालदीव, अफगानिस्तान, चीन तथा म्यांमार के साथ के सम्बन्धों को 1997 के गुजराल सिद्धान्त (Gujral Doctrine), 2005 की भारत की नई पड़ोसी नीति तथा मई,2014 में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की ‘ पड़ोसी प्रथम नीति ’ के सन्दर्भ में विस्तृत रूप से देखा गया है। इस पुस्तक में पड़ोसी देशों के साथ भारत के राजनीतिक सम्बन्धों का विशद विश्लेषण किया गया है। साथ ही उन सारी बातों का तथ्यात्मक वर्णन भी किया गया है कि भारत किस प्रकार अपने पड़ोसी देशों की बिना समय गंवाए ऐन वक्त में सहायता करता रहा है और उन देशों ने भारत की सहायता को किस रूप में ग्रहण किया है। आशा है यह पुस्तक भारत की विदेश नीति में रुचि रखने वाले पाठकों और विशेष रूप से प्रतियोगी परीक्षार्थियों के लिए काफी लाभप्रद सिद्ध होगी।
ABOUT
GIRISH CHANDRA PANDE
Girish Chandra Pande is a retired Joint Director from the Ministry of Culture and a published author in leading Hindi political magazines. In his 38 years of service, he has worked with various Government Ministries.
With a master’s degree in Sociology and Hindi and a deep interest in politics, over the past 30 years, Girish has authored 150+ articles on socio-political issues in some of the leading newspapers, magazines like Pratyogita Darpan, Jansatta, Rashtriya Sahara, Navbharat Times to name a few.
An ardent lover of Hindi, post-retirement, he is working towards making understanding of International politics more accessible to everyone, especially students.
You can get in touch at girishchpande@gmail.com